बच्चे के जीवन के शुरुआती घंटे / Your baby's first hours of life in Hindi

कई महीनों के इंतजार के बाद, आखिरकार, आपका नवजात बच्चा आ गया है! माँ बनने वाली महिलाएं अक्सर प्रसव के बारे में सोचकर काफी समय बिताती हैं, लेकिन वे इस बारे में नहीं जानती और न ही सोचती हैं कि प्रसव के बाद के शुरूआती घंटों के दौरान क्या होता है। आगे पढ़ें ताकि आप अपने बच्चे के साथ संबंध बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाएं।

नवजात शिशु कैसे दिखते हैं

आप यह जानकर काफी आश्चर्यचकित होंगी कि आपका नवजात शिशु जन्म के समय कैसा दिखता है। अगर आपका प्राकृतिक तरीके से प्रसव होता है, तो आपका बच्चा हड्डियों के छोटे व संकीर्ण मार्ग से होते हुए इस दुनिया में प्रवेश करता है। नवजात बच्चे का नीले व थोड़े टेढ़े सिर के साथ पैदा होना कोई असामान्य बात नहीं है। बच्चे के कान मुड़े हुए हो सकते हैं। आपके बच्चे के सिर पर बाल भी हो सकते हैं और वह गंजा भी पैदा हो सकता है। आपका बच्चा एक मोटी, चिपचिपी और सफ़ेद परत से ढका होता है, जो गर्भ में बच्चे की त्वचा को सुरक्षा प्रदान करती है। यह बच्चे को पहली बार नहलाते समय साफ हो जाती है।

जैसे ही आपका बच्चा पहली बार आपकी बाहों में आएगा तो आपका ध्यान सबसे पहले उसकी आँखों की तरफ जायेगा। ज्यादातर नवजात शिशु अपनी आँखें जन्म के तुरंत बाद ही खोल लेते हैं और पहली नजर में उसकी आँखें नीले-भूरे रंग की प्रतीत होती हैं। बच्चे को ध्यान से देखने पर आप देखेंगे कि उसके गाल फुले हुए हैं, उसके मुँह व जीभ पर सफ़ेद व छोटे छालें तथा शरीर पर कुछ झुर्रियां भी हैं। कुछ बच्चे जो तय तिथि से पहले पैदा हो जाते हैं वे आमतौर पर मुलायम व पतले बालों से ढके होते हैं जो दो से तीन सप्ताह में साफ हो जाते हैं। आपके बच्चे की त्वचा पर कुछ रंगीन निशान, मुंहासे या चकते हो सकते हैं तथा नाख़ून थोड़े लम्बे हो सकते हैं। आप देखेंगे कि आपके बच्चे के स्तन व गुप्त अंग थोड़े सूजे हुए होंगे।

आपका बच्चा किस प्रकार दिन-प्रतिदिन अपना रूप बदलता है और शिशु के जन्म के समय के निशान किस प्रकार समय के साथ दूर होते हैं, अगर आपको इस तरह के किसी भी विषय के बारे में चिंता है तो आप अपने डॉक्टर से सलाह ले सकती हैं। कुछ हफ्तों के बाद आप देखेंगे कि आपका बच्चा उसी तरह दिख रहा जैसा आपने अपने सपनों में सोचा था।

बच्चे के साथ संबंध बनाना

अपने बच्चे के साथ बिताए प्रसव के बाद के वो पहले कुछ घंटे बहुत खास होते हैं। हालाँकि प्रसव के बाद आप थकान महसूस करेंगी, लेकिन आपका बच्चा थोड़ा फुर्तीला हो सकता है। अपने बच्चे को अपनी त्वचा व छाती से लगाएं तथा उसे आपकी आवाज़ व चेहरे को पहचानने दें। आपका बच्चा सिर्फ दो फुट की दुरी तक ही देख सकता है। आप गौर करेंगी कि रोशनी तेज़ होने व अचानक तेज़ आवाज़ आने पर आपका बच्चा अपनी बांहो को यहाँ-वहाँ हिलाने लगता है। बच्चे चूसने व हाथों से पकड़ने जैसी प्रतिक्रियाओं को पैदा होने से पहले ही सीख लेते हैं। अपनी उंगलियों को अपने बच्चे की हथेलियों पर रखने पर आप देखेंगी कि वह किस प्रकार आपकी उंगलियों को दबाने लगता है। बच्चे द्वारा भूख के संकेत दिखाने पर उसे दूध पिलाएं। आप हमारे स्तनपान वाले भाग पर जाकर इससे जुड़े सुझाव ले सकती हैं ताकि आपका पहला स्तनपान अच्छा रहे।

आपके नवजात शिशु के लिए चिकित्सा देखभाल

जन्म के तुरंत बाद नवजात शिशु के स्वास्थ्य को जानने के लिए कुछ महत्वपूर्ण जाँच व परिक्षण किए जाते हैं। इनमे से कुछ क़ानूनी रूप से अनिवार्य होते हैं। यदि शिशु पैदा होते समय स्वस्थ है तो अपगार (Apgar) परीक्षण के अलावा बाकि अन्य परीक्षण कुछ देर बाद भी किए जा सकते हैं। चिकित्सा देखभाल में थोड़ी देरी करने से आप अपने बच्चे के शुरूआती पलों को सुरक्षित कर पाएंगे। यदि नवजात बच्चे को थोड़ी देर परीक्षणों और टीकों से दूर रखा जाए तो वह खिलाने और प्यार करने के ज़्यादा इच्छुक होता है। इसलिए प्रसव से पहले अपने डॉक्टर से महत्वपूर्ण दवाइयों, टीकों तथा जांचो को देरी से करने के बारे में बात करें। इसके साथ ही एक अभिभावक होने के नाते यह भी ध्यान रखें कि आपके शिशु को आवश्यक जाँच तथा टीके उचित समय पर मिलें।

बच्चे के जन्म के तुरंत बाद लगभग सभी अस्पतालों में निम्नलिखित परिक्षण व जाँच करना आवश्यक होता है:

अपगार (Apgar) परिक्षण

शिशु स्वस्थ है या नहीं तथा शिशु को किसी अन्य स्वास्थ्य सेवा की आवश्यकता है या नहीं, इसे जानने के लिए अपगार परिक्षण एक उचित तरीका है। यह परिक्षण आमतौर पर दो बार किया जाता है। पहला परिक्षण जन्म के एक मिनट बाद तथा दूसरा जन्म के पांच मिनट बाद किया जाता है। इस परिक्षण में डॉक्टर तथा नर्स शिशु के नीचे दिए गए पांच स्वास्थ्य संकेतों का निरीक्षण करते हैं:

  • ह्रदय की गति
  • सांस लेना
  • गतिविधियाँ और मांसपेशी टोन
  • अनैच्छिक प्रतिक्रियाएं
  • त्वचा का रंग

अपगार के स्कोर की गणना शून्य से दस तक की जाती है। शिशु द्वारा सात या सात से ज्यादा अंक प्राप्त करने पर उसे स्वस्थ शिशु की श्रेणी में रखा जाता है। लेकिन इससे कम अंक प्राप्त करना शिशु को अस्वस्थ घोषित नहीं करता, कई बार पूरी तरह से स्वस्थ शिशु भी जन्म के पहले मिनट में अपगार के कम अंक प्राप्त करते हैं।

98 प्रतिशत से ज्यादा स्थितियों में शिशु जन्म के पांच मिनटों में अपगार के सात या सात से ज्यादा अंक प्राप्त कर लेते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो उन्हें चिकित्सीय देखभाल व निगरानी की जरूरत होती है।

आँखों की देखभाल

प्रसव के दौरान होने वाले आँखों के संक्रमण से बचाने के लिए आपके बच्चे की आँखों में दवाएँ डाली जाती हैं। गोनोरिया (gonorrhea) तथा क्लैमिडिया (chlamydia) जैसे यौन संचारित रोग (STI) नवजातों में आँखों के संक्रमण के प्रमुख कारण होते हैं। इन संक्रमणों का इलाज नहीं होने पर शिशु में अंधापन भी हो सकता है।

कई बार ये दवाएँ नवजात शिशु की आँखों में धुंधलापन या चुभन कर सकती हैं। तो आप कुछ क्षणों के लिए यह उपचार टाल भी सकती हैं।

कुछ माता-पिता का यह प्रश्न होता है की शिशु को वास्तव में इस इलाज की आवश्यकता है या नहीं। क्योंकि कुछ महिलाएं जिनमें यौन संचारित रोग (STI) होने की संभावनाएं कम होती हैं, वे महिलाएं ये नहीं चाहती की उनके नवजात शिशु में इन दवाओं का उपयोग हो। परन्तु अभी ऐसा कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है जो इन दवाओं को शिशु के लिए नुकसान-दायक साबित करे।

यह बात ध्यान देने योग्य है की जिन महिलाओं में यौन संचारित रोगों (STIs) के नकारात्मक परिणाम आते हैं उन्हें प्रसव के दौरान संक्रमण हो सकता है। साथ ही जो महिलाएं गोनोरिया (gonorrhea ) तथा/या क्लैमिडिया (chlamydia) से संक्रमित होती हैं वह लक्षणों के प्रकट नहीं होने के कारण इन संक्रमणों से अनजान होती हैं।

विटामिन के (K) की ख़ुराक

आमतौर पर नवजात शिशुओं में विटामिन के (K) की कमी होती है। इसलिए नवजात शिशुओं के टांगों के ऊपरी हिस्से में विटामिन K की खुराक का टीका लगाने की सलाह दी जाती है। विटामिन K खून का थक्का बनाने के लिए आवश्यक होता है। इसलिए विटामिन K की कमी शरीर में गंभीर रक्तस्त्राव की समस्या पैदा कर सकती है।

आमतौर पर शरीर के जिस स्थान पर टीका लगाया जाता है शिशुओं को उस स्थान पर मामूली दर्द का अनुभव होता है जो कुछ समय बाद समाप्त हो जाता है। हालांकि शिशुओं के लिए जन्म के तुरंत बाद यह टीका लगवाना थोड़ा असुखद हो सकता है, इसलिए आप चाहें तो इस टीके को कुछ क्षण के लिए स्थगित भी कर सकती हैं।

नवजात शिशुओं में उपापचय क्रियाओं की जाँच

डॉक्टर या नर्स शिशुओं की एड़ी से खून के सैंपल लेते हैं। इन सैंपल का उपयोग बच्चो में विभिन्न बिमारियों की जाँच करने के लिए किया जाता है। अगर किसी बीमारी या समस्या का सही समय पर पता लग जाए तो बच्चों में होने वाली विभिन्न गंभीर समस्याएं जैसे विकास संबंधी विकलांगता, अंगो की क्षति, अंधापन तथा मृत्यु तक पर काबू पाया जा सकता है।

नवजात शिशुओं में फिनायलकीटोन्यूरिया (PKU), थाइरोइड संबंधी रोग, ग्लाक्टोसेमिया (उपापचय संबंधी रोग), तथा सिकल सेल एनीमिया (खून की कमी) जैसी 30 बिमारियों की जाँच की जानी चाहिए।

सुनने की शक्ति की जाँच

ज्यादातर नवजात शिशु जन्म के तुरंत बाद सुनने लग जाते हैं। शिशुओं में विभिन्न ध्वनियों की प्रतिक्रियों की जाँच करने के लिए सुनने के यंत्र जैसे छोटे इयरफोन या माइक्रोफोन का उपयोग किया जाता है। नवजातों में इस परीक्षण की जाँच ज़रूरी होती है क्योंकि सुनने की कमी या बहरापन कोई असामान्य समस्या नहीं है। लेकिन इन समस्याओं का अगर वक्त से पहले पता लग जाए तो बच्चों को जल्द से जल्द आवश्यक चिकित्सा सेवाएं दी जा सकती हैं तथा बच्चों में बोलने, सुनने, समझने तथा भाषा में होने वाली समस्याओं को दूर किया जा सकता है। आप नजदीकी अस्पताल व बच्चों के डॉक्टर से इस परिक्षण से संबंधित प्रश्न पूछ सकती हैं।

हेपेटाइटिस बी (Hepatitis B) का टीका

सभी नवजात शिशुओं को अस्पताल से नकलने से पहले हेपेटाइटिस के विषाणु से बचाने के लिए हेपेटाइटिस बी का टीका लगाना आवश्यक होता है। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि कुछ बच्चों को अस्पताल से निकलने से पहले यह टीका और उपचार नहीं मिल पाता। इस विषाणु के कारण जीवन भर रहने वाले संक्रमण, जिगर की गंभीर समस्या तथा मृत्यु तक हो सकती है।

हेपेटाइटिस बी का टीका तीन श्रेणियों में दिया जाता है। यह सलाह दी जाती है कि पहला टीका शिशु के अस्पताल से निकलने से पहले ही दिया जाना चाहिए। अगर माँ को यह संक्रमण है तो शिशु को जन्म के बारह घंटो के अंदर हेपेटाइटिस बी प्रतिरक्षा ग्लोब्युलिन (HBIG) का टीका लगाना चाहिए। दूसरा टीका जन्म के एक या दो महीनों के अंदर तथा तीसरा टीका जन्म के चौबीस हफ्तों के बाद व 18वें महीने से पहले लगाना चाहिए।

पूर्ण जाँच

जन्म के तुरंत बाद डॉक्टर या नर्स निम्नलिखित चीजें करते हैं :-

  • शिशु के वजन, लम्बाई तथा सिर की जाँच।
  • शिशु के शरीर के तापमान की जाँच।
  • शिशु की श्वसन व ह्रदय गति की जाँच।
  • शिशु को नहलाना तथा गर्भनाल को साफ करना।

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